किसी दिन उतरेंगे हम-तुम
अपनी ढलती उम्र-सी
गंगाघाट की सीढ़ियों से
एक दूसरे को थामे, गुनगुनाते
'छू-कित्-कित्' वाले अंदाज़ में
और बैठेंगे पास-पास
उम्र का पड़ाव भूलकर
गंग-धार में पैर डुबोए घुटने तक
और उस झुटपुटे साँझ में
जब धाराओं पर तैरती
क्षितिज से 30 या 40 डिग्री कोण
ऊपर टंगे अस्ताचल के सूरज की
मद्धिम सिन्दूरी किरणें
खेलती जल से 'डेंगापानी'
प्रतिबिंबित होकर
हमारे अंगों को छूकर
फैल जायेगी
मेरे फिरोज़ी टी-शर्ट से होकर
तुम्हारी काली कुर्ती में
एकाकार हो जायेगी
हर पल लाख़ सवाल करने वाले
होंठ मौन होकर
सिर्फ़ उस पल को करेंगे महसूस
अवनत होते तन के ज्यामितीय
आयतन से परे , उन्नत मन के जटिल
बीजगणितीय सूत्रों को
उँगलियों के पोरों पर दुहराएँगे
अनजाने- जाने साँसों
की मदहोश जुगलबंदी पर
अनायास ही
तर्जनी से टटोल कर
तुम्हारी अधरों को
वापस अपने होठों पर
फिरा कर वही तर्जनी
महसूस करूँगा तुम्हारे
कंपकंपाते अधरों की नमी,
गंगोत्री के पारदर्शी जल-सा
तुम्हारे बहते मन में पल-पल
तलहट में लुढ़कता पाषाण-खण्ड-सा
अनवरत दिखूँगा मैं
ढलते सुरमई शाम की
धुंधलके की चादर में लिपटे
खोकर दोनों एक-दूसरे की
मासूम पनीली आँखों में
मुग्ध पलकें उठाए निहारेंगे
कभी एक-दूसरे को, कभी क्षितिज,
कभी आकाश, कभी धुंधले-तारे
नभ के माथे पर लटका
मंगटीके-सा चाँद
बिखेरता चटख उजली किरणें
हमारी सपनीली, गीली आँखों में
कुछ पल ठहर कर
ठन्डे पानी में उतर कर
हमारे अहसासों के साथ
'लुका-छिपी' खेलेगा और ...
मैं हौले से तुम्हारी लरज़ती उँगलियों को
टटोलकर प्रेम से अपनी
हथेलियों में लपेट लूँगा
एक-दूसरे के काँधे पर टिकाकर
प्रेम भरे
मन के सारे अहसास
मूँद कर अखरोटी पलकें
उड़ चलेंगे
हमारे-तुम्हारे मन संग-संग
प्रस्थान करेंगे महाप्रस्थान तक,
स्वप्निल अविस्मरणीय यात्रा के लिए
और गंगा की पवित्र धाराओं से
स्नेहिल आशीष पाकर
प्रेम हमारा ......
पा लेगा अजर, अमर .. अमरत्व .
वाहह्ह्ह क्या बात है सर...
जवाब देंहटाएंरुहानी एहसास ...अद्भुत, खूबसूरत,हर शब्द पंक्तियाँ, बिंब...उत्कृष्ट सृजन...वाहह्हह... सराहना के लिए शब्द नहीं है...मन छूती इस सुंदर कृति के लिए मेरी शुभकामनाएँ स्वीकारे।
आपके सूक्ष्म आकलन, सराहना और शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया !☺
हटाएंबेहद सुन्दर ...,उत्कृष्ट सृजनात्मकता ।
जवाब देंहटाएंआकलन और सराहना के लिए धन्यवाद आपको !
हटाएंअनुपम, अप्रतिम,अद्भुत मन से निकली सच्ची प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्द संयोजन सुंदर भाव रचना ।
रचना के लिए विशेषणों की बौछार करने के लिए मन से धन्यवाद !!!
हटाएंप्रेम के अद्भुत आध्यात्म का उद्गीत!!!!
जवाब देंहटाएंसही आकलन और संभवतः उचित प्रोत्साहन के लिए नमन !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मैं सकारात्मक प्रशंसा में खो ही गया था जैसे ... मैं आपको "पाँच लिंकों का आनंद" पर साझा करने के लिए शुक्रिया बोलना भूल ही गया था ... मेरा मन से धन्यवाद स्वीकार कीजिए ...अच्छा लग रहा ब्लॉग की दुनिया से जुड़ कर .. दुबारा धन्यवाद आपका ☺
हटाएंव्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
सादर
अगर मेरे जैसे नए (लेखन में/उम्र में नहीं) लोग की रचना ने आपके मन से "वाह्ह्ह्ह्ह" कहलवा दिया , वही मेरे लिए अनमोल पदक जैसा है।
हटाएंऔर यह "बेहतरीन" जैसा विशेषण मानो मेरा प्रमाण पत्र ... मन से शुक्रगुज़ार हूँ आपके उत्साहवर्द्धन का ☺
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-05-2019) को "सुनो बटोही " (चर्चा अंक-3325) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल "सुनो बटोही" पर भी करने/करवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। वैसे मैं इस (ब्लॉग) के क्षेत्र में एकदम से नया हूँ
हटाएंकिसी दिन उतरेंगे हम-तुम
जवाब देंहटाएंअपनी ढलती उम्र-सी
गंगाघाट की सीढ़ियों से
एक दूसरे को थामे, गुनगुनाते
'छू-कित्-कित्' वाले अंदाज़ में
और बैठेंगे पास-पास
उम्र का पड़ाव भूलकर
लाजबाब ,प्रशंसा से परे ,प्रेम की प्रकाष्ठा को दर्शता हर शब्द हृदय को छूता सा ,सादर नमस्कार आप को
आपको भी नमस्कार हमारा ...
हटाएंआपकी प्रशंसा कही अहम् उत्पन्न ना कर दे ... जो
लेखनी को अवरोध दे। वैसे ये तो मानव गुण है प्रशंसा से मन का खुश होना।
मेरे शब्दों ने आपके अंतर्मन को स्पर्श किया , ये मेरे शब्दों का सौभाग्य है।
प्रेम जो गंगा की तरह पावन है...गंगाघाट से लेकर गंगोत्री तक के अछूते, सुकुमार सौंदर्य को शब्दों में पिरोते हुए अपने प्रेम के साथ एकाकार कर देना....प्राकृतिक बिंबों का सहज सुंदर प्रयोग...
जवाब देंहटाएंऐसी रचना प्रिय श्वेता बहन के ब्लॉग के बाद यहीं मिली है। बधाई आपको !!!
श्वेता जी की लेखनी में जो धार है, बिम्ब है ... महोदया वह मुझ जैसे में नहीं। ये आपका बड़प्पन है जो आपने उन से तुलना किया।
हटाएंवैसे भी प्रेम तो आज भी पावन है और कल भी रहेगा परंतु गंगा को माँ कह कर भी हमने पावन कहाँ रहने दिया है। हम मानव ना ......
वाह बेहद शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक तुच्छ अभिव्यक्ति के आकलन और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद !!!☺
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब... उत्कृष्ट सृजन...
प्रस्थान से महाप्रस्थान तक की स्वप्निल यात्रा....बहुत ही खूबसूरत रचना...।
शब्दकोश से मेरे चुराए कुछ शब्दों का संकलन आपके मुख से "वाह!!!" निकलवा गया , ये मेरे लिए हैरानी और प्रसन्नता की भी बात है।
हटाएंआपके द्वारा दिए कुछ विशेषण (लाजवाब ...) ही हमारे लिए अनमोल उपहार हैं।
हार्दिक धन्यवाद !!
अनोखे बिम्ब, गणना से परे गणितीय स्वरुप, सुमधुर एहसास की रचना
जवाब देंहटाएंवाह ... वाह
हार्दिक धन्यवाद आपका महाशय !! रचना के बाद दोहरी ख़ुशी तब होती है जब सामने से कोई आपकी लेखन के शब्दों से भाव के सुगंध महसूस करता है। वह आपने भी किया है। वाह वाह जैसे दो शब्दों से उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...
हटाएंअद्भुत रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंआपको मेरी साधारण सी रचना अद्भुत लगी , इसके लिए आपके अवलोकन को नमन करता हूँ। हार्दिक धन्यववाद !!
हटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर के साथ 'अति' लगाने के लिए आपका अति हार्दिक धन्यवाद !!!☺
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अध्यात्मिक प्रेम से ओत प्रोत रचना आदरणीय सुबोध जी | ये स्वप्निल यात्रा सफल होती या नहीं पर इसका एहसास मन की रिक्तता को भरने में कुछ पल के लिए सक्षम जरुर होता है | स्वप्निल प्रेम को संजोती अनूठी काव्य रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें | भावों की ये प्रांजलता यूँ ही बनी रहे | सादर --
जवाब देंहटाएंकविता की आत्मा तक पँहुचने और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुबोध जी एक विनम्र आग्रह कि अपने ब्लॉग का नाम हिन्दी में लिखें। इससे इसकी शोभा द्विगुणित हो जाएगी क्योकि नाम अपने आप में विशिष्ट है।
जवाब देंहटाएंरेणु जी आपका सुझाव उत्तम है। दरअसल Youtube, Instagram और Yourquote पर भी मेरा account अंग्रेज़ी में ही है, इसीलिए ऐसा है।
हटाएंकोशिश करता हूँ।
अगर मौका मिले तो मेरी Youtube पर "मुआवज़ा" नामक एकलअभिनय देखिए,इसी ब्लॉग पर साझा किया हुआ है। शायद अच्छा लगे।
अत्यंत आभार आदरणीय मेरे सुझाव को अमल में लाने के लिए | आपकी मार्मिक प्रस्तुति मुआवजा उसी दिन देख लिया था जब पहली बार आपके ब्लॉग पर आई थी | वहां लिखा भी था मैंने | सराहने से परे इस एकांकी के लिए कोई सराहना के शब्द नहीं सूझते | बहुत ही लाजवाब और सार्थक प्रस्तुति है , जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं | अब ब्लॉग का मान अत्यंत शोभायमान हो रहा है | सादर |
हटाएंआपकी सोच से उपजी सराहना की पंक्तियाँ ऊर्जावान करती हैं। हार्दिक धन्यवाद !!!
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