अनाम रिश्ते!/क्षणभंगुर
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बाद लंबी तपिश के
उपजी पहली बारिश से
मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह
उपजते हैं कुछ अनाम रिश्ते।
सरदी की ठिठुरती हुई
शामों से सुबहों तक
फैली ओस की बूँदों की तरह
उभरते हैं कुछ अनाम रिश्ते।
अमावस की काली रातों में
रातों के अंधियारों में
मचलते जुगनुओं की तरह
चमकते हैं कुछ अनाम रिश्ते।
क्षणभंगुर होकर भी
"सखी" न जाने क्यों?
दिल को अक्सर ही
भरमाते हैं कुछ अनाम रिश्ते।
©सुबोध सिन्हा
वाहह्हह... बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता सर..👌👌
जवाब देंहटाएंक्षणभंगुर होकर भी
"सखी" न जाने क्यों?
दिल को अक्सर ही
भरमाते हैं कुछ अनाम रिश्ते।
अति सुंदर..वाहह्हह।
रचना पर उचित प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आपका !
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